जितिया पर्व | मातृत्व का अनोखा उत्सव | और संतान की रक्षा का व्रत

जीतिया पर्व न केवल माताओं के समर्पण और पुत्रों की भलाई के लिए किया जाने वाला व्रत है, बल्कि यह सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से भी महत्वपूर्ण है।

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9/19/20241 min read

जितिया पर्व: मातृत्व का त्योहार और संतान की लंबी उम्र की कामना!

पंचांग के अनुसार, आश्विन माह की अष्टमी तिथि 24 सितंबर 2024 को दोपहर 12 बजकर 38 मिनट पर हो शुरू हो रही है। वहीं, इस तिथि का समापन 25 सितंबर को दोपहर 12 बजकर 10 मिनट पर होने जा रहा है। ऐसे में उदया तिथि के अनुसार, जितिया व्रत बुधवार, 25 सितंबर को किया जाएगा

भारत में त्योहारों का विशेष महत्व है, जो हमें हमारी संस्कृति, परंपरा और भावनाओं से जोड़ते हैं। ऐसा ही एक महत्वपूर्ण त्योहार है जितिया पर्व, जिसे मुख्य रूप से बिहार, उत्तर प्रदेश, और झारखंड के साथ-साथ नेपाल में भी बड़े उत्साह से मनाया जाता है। जितिया पर्व माताओं द्वारा अपने बच्चों की लंबी उम्र, खुशहाल जीवन, और उन्नति की कामना के लिए मनाया जाता है। इस पर्व में माताएं पूरे श्रद्धा भाव से व्रत करती हैं और अपने बच्चों के जीवन में सुख-समृद्धि की कामना करती हैं।

जितिया पर्व का महत्व

जितिया पर्व खासतौर पर माताओं के समर्पण, प्रेम, और उनकी बलिदान की भावना का प्रतीक है। इस दिन माताएं निर्जला व्रत रखती हैं, यानि वे दिनभर बिना जल ग्रहण किए व्रत करती हैं। इस व्रत को रखना आसान नहीं होता, लेकिन माताओं का अपने बच्चों के प्रति असीम प्यार और उनकी लंबी उम्र की कामना उन्हें यह कठोर व्रत रखने की शक्ति देता है। जितिया पर्व के पीछे यह मान्यता है कि इस व्रत को करने से संतान दीर्घायु, निरोगी और सुखी रहती है।

जितिया पर्व की कथा

जितिया पर्व से जुड़ी एक प्रमुख पौराणिक कथा है, जो महाभारत काल से संबंधित है। इसके अनुसार, जब महाभारत युद्ध चल रहा था, तब जीमूतवाहन नामक एक राजा थे, जिनकी दया और करुणा से यह व्रत जुड़ा हुआ है। जीमूतवाहन ने अपनी जान की परवाह न करते हुए गरुड़ के द्वारा खाए जाने वाले नागवंश की रक्षा की। इस बलिदान और त्याग के प्रतीक के रूप में माताएं इस व्रत को करती हैं, ताकि उनके बच्चे सुरक्षित रहें और उनके जीवन में कोई विपत्ति न आए।

जितिया पर्व की तैयारी

जितिया पर्व की शुरुआत नहाय-खाय से होती है, जिसका अर्थ है कि व्रत करने से पहले माताएं स्नान करके शुद्ध भोजन ग्रहण करती हैं। इस दिन विशेष रूप से पारंपरिक भोजन तैयार किया जाता है, जिसमें सादा भोजन, जैसे चावल, दाल, और बिना प्याज-लहसुन की सब्जी होती है। इसके बाद व्रत रखने वाली माताएं अगले दिन तक बिना भोजन और पानी के रहती हैं।

व्रत की कठिनाई और माताओं का समर्पण

जितिया पर्व का व्रत कठिन होता है क्योंकि इसमें माताएं निराहार और निर्जला व्रत करती हैं। हालांकि यह व्रत शारीरिक रूप से कठिन होता है, लेकिन माताएं इसे अपनी संतान की सुरक्षा और उनके अच्छे स्वास्थ्य के लिए पूरे समर्पण और आस्था के साथ करती हैं। माताओं की इस तपस्या और बलिदान को देखकर हर किसी के मन में उनके प्रति सम्मान की भावना जागृत होती है।

जितिया पर्व का पूजा-विधान

व्रत के दूसरे दिन माताएं जितिया की पूजा करती हैं। पूजा के दौरान जीमूतवाहन की मूर्ति या प्रतीक रूप में उनका चित्र बनाया जाता है। इसमें मिट्टी, चावल, और दूब (घास) से उनकी पूजा की जाती है। पूजा के बाद महिलाएं अपने बच्चों के लिए दीर्घायु की प्रार्थना करती हैं। पूजा के बाद व्रत समाप्त होता है और महिलाएं प्रसाद ग्रहण करती हैं।

माताओं का समर्पण और जितिया पर्व का महत्व

जितिया पर्व सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, यह माताओं के अपने बच्चों के प्रति निस्वार्थ प्रेम, उनकी देखभाल और समर्पण का प्रतीक है। यह पर्व हमें यह सिखाता है कि माता का प्यार कितना गहरा और त्यागमय होता है। उनके द्वारा किए गए इस व्रत के पीछे केवल एक ही भावना होती है—अपने बच्चों की लंबी उम्र और खुशहाल जीवन की कामना।

जितिया पर्व की यह परंपरा पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है, और आज भी इसे पूरे श्रद्धा और विश्वास के साथ मनाया जाता है। यह पर्व हमें परिवार, परंपरा और आपसी प्रेम का महत्व सिखाता है। माताओं का यह त्याग और उनकी बच्चों के प्रति असीम ममता इस त्योहार को और भी खास बना देती है।

निष्कर्ष

जितिया पर्व एक ऐसा अवसर है, जो माताओं के समर्पण, त्याग, और बच्चों के प्रति उनके असीम प्रेम को उजागर करता है। इस त्योहार में माताएं व्रत रखती हैं, पूजा-अर्चना करती हैं, और अपने बच्चों की भलाई के लिए भगवान से प्रार्थना करती हैं। जितिया पर्व हमें परिवार के महत्व को समझने और परंपराओं को जीवित रखने की प्रेरणा देता है।

माताओं के इस अद्वितीय प्रेम और समर्पण के प्रतीक, जितिया पर्व को हम सभी को पूरे हर्षोल्लास और श्रद्धा के साथ मनाना चाहिए, ताकि हमारी संस्कृति और परंपराएं सदैव जीवित रहें।

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